सांझ का अँधेरा जब,
धीरे से मेरे मन को,
अपने आगोश में ले लेता है |
उसके बदन की खुशबु कुछ
मेरी सासों में यूँ महक सी जाती है ।
उसके काले बालों का साया,
आसमान को कुछ ढांक सा लेता है ।
उसकी अल्लड़ सी हंसी,
कानों में कुछ गूँज सी जाती है ।
मैं, मेरे मन में कसक सी जो है,
उसको कुरेद सा लेता हूँ,
छुप जाता हूँ उन यादों के गुब्बार में,
जहाँ एक अजीब सा अपनामन,
मेरा इंतज़ार कर रहा होता है||
(Oct 10, 2013, in train from Delft to Rotterdam)
धीरे से मेरे मन को,
अपने आगोश में ले लेता है |
उसके बदन की खुशबु कुछ
मेरी सासों में यूँ महक सी जाती है ।
उसके काले बालों का साया,
आसमान को कुछ ढांक सा लेता है ।
उसकी अल्लड़ सी हंसी,
कानों में कुछ गूँज सी जाती है ।
मैं, मेरे मन में कसक सी जो है,
उसको कुरेद सा लेता हूँ,
छुप जाता हूँ उन यादों के गुब्बार में,
जहाँ एक अजीब सा अपनामन,
मेरा इंतज़ार कर रहा होता है||
(Oct 10, 2013, in train from Delft to Rotterdam)
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